Translate

Tuesday, 15 November 2016

काले धन की वापसी के नाम पर नोटबन्दी अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए मोदी सरकार का जनता के साथ एक और धोखा!

काले धन की वापसी के नाम पर नोटबन्दी
अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए मोदी सरकार का जनता के साथ एक और धोखा!

साथियो !
पिछले 8 नवम्बर की रात से देश भर में अफरा-तफरी का आलम है। बैंकों के बाहर सुबह से रात तक लम्बी-लम्बी कतारें लगीं हैं,  सारे काम छोडकर लोग अपनी ही मेहनत और बचत के पैसे पाने के लिए धक्के खा रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों का इलाज नहीं हो  पा रहा, बाज़ार बन्द पड़े हैं, कामगारों को मज़दूरी नहीं मिल पा रही है, आम लोग रोज़मर्रा की मामूली ज़रूरतें तक पूरी नहीं कर पा रहे हैं। देश में कई जगह सदमे से लोगों की मौत तक हो जाने की ख़बरें आयीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि देश के बड़े पूँजीपतियों, व्यापारियों, अफसरशाहों-नेताशाहों, फिल्मी अभिनेताओं में काले धन पर इस तथाकथित “सर्जिकल स्ट्राइक” से कोई बेचैनी या खलबली नहीं दिखायी दे रही है। जिनके पास काला धन होने की सबसे ज़्यादा सम्भावना है उनमे से कोई बैंकों की कतारों में धक्के खाता नहीं दिख रहा है। उल्टे वे सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। आखिर माज़रा क्या है?
क्या है कालेधन की असलियत? दोस्तो, जिस देश और समाज में मेहनत की लूट को कानूनी जामा पहना दिया जाय। जहाँ पूँजीपतियों को कानूनन यह छूट हो कि वह मेहनतकशों के खून-पसीने को निचोड़कर अपनी तिजोरियाँ भर सकें वहाँ “गैर कानूनी” कालाधन  पैदा  होगा ही। आज देश की 90 फीसदी सम्पत्ति महज 10 फीसदी लोगों के पास है और इसमें से आधे से अधिक सम्पत्ति महज एक फीसदी लोगों के पास है। यह देश के मेहनत और कुदरत की बेतहाशा लूट से ही सम्भव हुआ है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है।
साथियो, काला धन वह नहीं होता जिसे बक्सों या तकिये के कवर में या जमीन में गाड़कर रखते हैं। सच्चाई यह है कि देश में काले धन का सिर्फ़ 6 प्रतिशत नगदी के रूप में है । आज कालेधन का अधिकतम हिस्सा रियल स्टेट, विदेशों में जमा धन और सोने की खरीद आदि में लगता है। कालाधन भी सफेद धन की तरह बाजार में घूमता रहता है और इसका मालिक उसे लगातार बढ़ाने की फिराक में रहता है। आज पैसे के रूप में जो काला धन है वह कुल कालेधन का बेहद छोटा हिस्सा है और वह भी लोगों के घरों में नहीं बल्कि बाजार में लगा हुआ है। आज देश के काले धन का अधिकांश हिस्सा बैंकों के माध्यम से पनामा, स्विस और सिंगापुर के बैंकों में पहुँच जाता है। आज असली भ्रष्टाचार श्रम की लूट के अलावा सरकार द्वारा ज़मीनों और प्राकृतिक सम्पदा को औने-पौने दामों पर पूँजीपतियों को बेचकर किया जाता है। साथ ही बड़ी कम्पनियों द्वारा कम या अधिक के फर्जी बिलों द्वारा, बैंकों के कर्जों के भुगतान न देने और उसे बाद में बैंकों द्वारा नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति घोषित करने और उसका भुगतान जनता के पैसे से करने, बुरे ऋणों (बैड लोन) की माफी और उसका बैंकों को भुगतान जनता के पैसों से करके किया जाता है। पूँजीपतियों द्वारा हड़पा गया यह पैसा विदेशी बैंकों में जमा होता है और फिर वहाँ से देशी और विदेशी बाज़ारों में लगता है। हालाँकि इस भ्रष्टाचार में कालेधन का एक हिस्सा छोटे व्यापारियों और अफसरों को भी जाता है लेकिन यह कुल कालेधन के अनुपात में बहुत छोटा है।
मोदी सरकार के काले धन की नौटंकी का पर्दा इसी से साफ हो जाता है जब मई 2014 में सत्ता में आने के बाद जून 2014 में ही विदेशों में भेजे जाने वाले पैसे की प्रतिव्यक्ति सीमा 75,000 डॉलर से बढ़ाकर 1,25,000 डॉलर कर दिया और जो अब 2,50,000 डॉलर है। केवल इसी से पिछ्ले 11 महीनों में 30,000 करोड़ धन विदेशों में गया है। विदेशों से काला धन वापस लाने की बात करने और लोगों को दो दिन में जेल भेजने वाली मोदी सरकार के दो साल बीत जाने के बाद भी आलम यह है कि एक व्यक्ति भी जेल नहीं भेजा गया। क्योंकि इस सूची में मोदी के चहेते अंबानी, अडानी से लेकर अमित शाह, स्मृति ईरानी और बीजेपी के कई नेताओं के नाम हैं। क्या हम इन तथाकथित देशभक्तों की असलियत को नहीं जानते जो हर दिन सेना का नाम तो लेते हैं पर सेना के ताबूत में भी इन्होंने ही घोटाला कर दिया था? क्या मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला, पंकजा मुंडे और बसुंधरा राजे के घोटालों की चर्चा हम भूल चुके हैं? क्या हम नहीं जानते कि विजय माल्या और ललित मोदी जैसे लोग हजारों करोड़ धन लेकर विदेश में हैं और यह इन्हीं की सरकार में हुआ। आज देश में 99 फीसदी काला धन इसी रूप में है और हम साफ-साफ जानते हैं कि इसमें देश के नेता-मंत्रियों और पूँजीपतियों की ही हिस्सेदारी है।
अब दूसरी बात, आज देश में मौजूद कुल 500 और 1000 की नोटों का मूल्य 14.18 लाख करोड़ है जो देश में मौजूद कुल काले धन का महज 3 फीसदी है। जिसमें जाली नोटों की संख्या सरकारी संस्थान ‘राष्ट्रीय सांख्यकीय संस्थान’ के अनुसार मात्र 400 करोड़ है। अगर एकबारगी मान भी लिया जाय कि देश में मौजूद इन सारी नोटों का आधा काला धन है (जो कि है नहीं) तो भी डेढ़ फीसदी से अधिक काले धन पर अंकुश नहीं लग सकता। दूसरी तरफ जिन पाकिस्तानी नकली नोटों की बात कर मोदी सरकार लोगों को गुमराह कर रही है वह तो 400 करोड़ ही है जो आधा फीसदी भी नहीं है। दूसरे, सरकार ने 2000 के नये नोट निकाले हैं जिससे आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार और काला धन 1000 के  नोटों की तुलना में और बढ़ेगा। अभी यूपी में चुनाव आयोग ने 7 करोड़ के नये  2000 वाले नोट पकड़े हैं, यह इसी बात को साबित करता है। इससे पहले चाहे 1948 या 1978 में नोटों को हटाने का फैसला हो, इतनी बुरी मार जनता पर कभी नहीं पड़ी। इससे यह सहज ही समझा जा सकता है कि मोदी सरकार का यह पैंतरा जनता को बेवकूफ बनाने के सिवा और कुछ नहीं है। यही बीजेपी 2014 में नोट बैन पर धमाचौकड़ी मचाते हुए विरोध कर रही थी! आज देश में जो छोटे व्यापारी और अफसर हैं वे  भी काले धन का अधिकतर पैसा जमीन, रियल स्टेट व सोना खरीदने और शेयर में लगाते हैं।
फिर मोदी सरकार ने क्यों लिया यह फैसला?
दोस्तो, मोदी सरकार जब आज देश की जनता के सामने अपने झूठे वायदों, बेतहाशा महंगाई, अभूतपूर्व बेरोजगारी और किसान – मजदूर आबादी की भयंकर लूट, दमन, दलितों, अल्पसंख्यकों पर हमले तथा अपनी सांप्रदायिक फासिस्ट नीतियों के कारण अपनी जमीन खो चुकी है तब फिर एक बार नोट बंद कर कालेधन के जुमले के बहाने अपने को देशभक्त सिद्ध करने की कोशिश कर रही है और अपने को फिर जीवित करना चाहती है। दूसरी बात जब उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर चुनाव आसन्न है तो ऐसे में जनता की आँख में अपने झूठे प्रचारों के माध्यम से एक बार और धूल झोंकने की साजिश है। साथ ही तमाम खबरें और तथ्य यह बता रहे हैं कि इस घोषणा से पहले ही बीजेपी ने अपने खातों में पैसा जमा कर लिया है। उदाहरण के लिए जैसा कि  नोट बंदी की घोषणा के दिन ही पश्चिम बंगाल बीजेपी ने अपने खाते में 1 करोड़ की रकम जमा करवायी। ऐसी हरकतों से वह आज के धनखर्च वाले चुनाव में बेहतर स्थिति में होगी। तीसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण है, देश में मंदी और पूँजीपतियों द्वारा बैंकों के कर्जे को हड़प जाने (नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति के रूप में और खराब ऋण(बैड लोन) ) के बाद जनता की गाढ़ी कमाई की जो मुद्रा बैंकों में जमा होगी उससे पूँजीपतियों को फिर मुनाफा पीटने के लिए पैसा दिया जा सकेगा। पूँजीपतियों द्वारा तमाम बड़े लोन बैंकों से लिए गए हैं और उनको चुकाया नहीं गया है। आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक 6,00,000 करोड़ रुपये की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं। पूँजीपतियों को फिर ऋण चाहिए और सरकार अब जनता के पैसे की डाकेजनी कर बैंकों को भर रही है जिससे इनको ऋण दिया जाएगा, जिसमें 1,25,000 करोड़ रिलायंस और 1,03,000 करोड़ वेदांता को दिये जाने हैं। इस कतार में कई और बड़े पूंजीपति भी शामिल हैं।
इस नोट बंदी में जनता के लिए क्या है?साथियो, मोदी सरकार की नोट बंदी जनता के लिए वास्तव में एक और धोखा, एक और छल-कपट, एक और लूट के अलावा कुछ नहीं है। इस बिकाऊ फासीवादी प्रचार तंत्र पर कान देने की बजाय जरा गंभीरता से सोचिए कि आज बैंकों और एटीएम पर लंबी कतारों में कौन लोग खड़े हैं? क्या उसमें टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी या कोई मोदी और अमित शाह या कोई बड़ा अफसर खड़ा है? तो क्या देश का सारा काला धन 5,000 से 15,000 रुपये  कमाने वाले मजदूर और आम जनता के पास है? पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक महिला 2000 रुपये पकड़े बैंक के सामने मर गई, महाराष्ट्र में एक गरीब रुपये के लिए बैंक आया था वापस नहीं होने से वह मर गया, देर रात तक बैंक में काम करने से आठ बैंक कर्मचारी गाड़ी की टक्कर से मर गए। दर्जनों मौतें हो चुकी हैं। क्या सारे काले पैसे के लिए इनकी ही आहुति होनी थी? जो दिल्ली में रिक्शा चलाने वाला मजदूर है, दिहाड़ी मजदूर है, रेहड़ी खोमचा लगाता है, छोटी-मोटी नौकरी करने वाली आम जनता है, वह बैंकों के सामने लाइन में लगी है। कितनों के पास बैंक खाते नहीं हैं, कितनों के पास कोई पहचान पत्र नहीं हैं। लोगों के पास आने- जाने के पैसे नहीं हैं, राशन के पैसे नहीं हैं। दलालों की चाँदी है। अफवाहें उड़ रहीं हैं; कहीं नमक महँगे दामों पर बिक रहा  है  तो कहीं 500 के नोट 300 और 400 रुपये में लिए जा रहे हैं। यही हाल पूरे देश का है। करोड़ों गरीब लोग जिन्होंने  अपनी सालों की कमाई को मुश्किल दिनों के लिए इकट्ठा करके रखा था, सब अपने खून-पसीने की कमाई के कागज बन जाने पर बेचैन हैं। कोई बेटी की शादी को लेकर परेशान है तो कोई अस्पताल में परेशान है। एक महिला लाश लेकर रो रही है कि अंतिम संस्कार के पैसे नहीं है। क्या हम नहीं जानते हैं कि इस देश में अभी भी एक भारी आबादी के पास तो बैंक खाते नहीं हैं, जो अपनी मेहनत पर दो जून की रोटी कमाती है और उसी में से पेट काटकर कुछ पैसे बचाती है? वह आज क्या करे? क्या हम तमाम तकलीफ़ों को चुपचाप सहेंगे क्योंकि मामला “देश”  और “कालेधन” का है? साथ ही ऐसे नये  नोटों के छपने का जो लगभग 15,000 करोड़ रुपया खर्च आयेगा वह भी जनता की गाढ़ी कमाई से ही वसूला जाएगा।
साथियो,  हमें इन जुमलेबाजों की असलियत को समझना होगा। आज जब फरेबी, नौटंकीबाज मोदी सरकार जनता के व्यापक हिस्से को रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा देने में असफल साबित हुई है और इसके अच्छे दिनों की सच्चाई लोगों के सामने आ गयी है तो यह 500 और 1000 के नोटों को बंद करके एक जनविरोधी कार्रवाई कर कालेधन को समाप्त करने की नौटंकी कर रही है। इसका जवाब जनता की व्यापक एकजुटता से देना होगा।
बिगुल मज़दूर दस्ता    नौजवान भारत सभा    दिशा छात्र संगठन
लेख का ऑनलाइन लिंक http://www.mazdoorbigul.net/archives/10457
फेसबुक पेज- https://www.facebook.com/mazdoorbigul/   
साभार

Wednesday, 9 November 2016

काले धन पर लगाम- मुद्रा परिवर्तन(वापसी) का फैसला

काले धन पर लगाम- मुद्रा परिवर्तन(वापसी) का फैसला
संजीव खुदशाह
आज सुबह घरों में काम करने वाली एक महिला ने बताया की 500 और 1000 रूपए के नोट बंद हो गये है। वो काफी परेशान लग रही थीउसने आगे बताया की इस रविवार उसकी बी सी खुली थी जिसके 12000 रूपए(500 और 1000 नोट में) उसे मिले है। लेकिन आज ही मुहल्‍ले के किराना दुकान वाले ने 500 नोट के बदले किराना देने से इनकार कर दिया, वो बच्‍चे के दूध के लिए भटक रही थी। मै इस खबर से हतप्रद हो गया सहसा मुझे यकीन नही हुआ लेकिन न्यूज़पेपर की हेड लाईन से उसके बातों पर यकीन होगया।
मैने कहा की तुम बैंक में पैसे बदल सकती हो बहुत आसान है। तो उसने बताया की उसका बैंक में एकाउंट ही नही है। दर असल यह समस्‍या लगभग हर मध्‍यम, निम्‍न मध्‍यम परिवार की है।
मैं बताना चाहूँगा की 500 एवं 1000 रूपये के नोट आज 9 नवंबर 2016 की बीती रात से अवैध(बंद) कर दिये गये है। उनकी जगह 500 तथा 2000 के  नये नोट जारी किये गये है। इसके पीछे आर बी आई का तर्क है जो आज के अधिकृत विज्ञापन में विस्‍तृत रूप से सामने आया है। वे इस प्रकार है
1 काले धन पर लगाम2 भ्रष्‍टाचार पर लगाम 3 जाली नोट पर रोक 4 आतंकवाद का वित्‍तपोषण पर नकेल आदि
सरकार के इस फैसले पर चारों ओर से प्रतिक्रिया आ रही है कुछ इसे साहसी कदम बता रहे है तो कूछ लोग केवल सनसनी पैदा करने वाला कदम बता रहे है। कुछ लोग ड़ॉ अंबेडकर के हवाले से भी इस तर्क का समर्थन कर रहे है।
डॉं अंबेडकर ने नही कहा की 10 वर्ष में नोट बदलने से भ्रष्‍टाचार में कमी आयेगी
हालांकि प्रख्‍यात अ‍र्थशास्‍त्री एवं आर बी आई के जनक डॉं अंबेडकर के हवाले से ये खबर फैलाई जा रही है की वे प्रति 10 वर्ष में नोट बदले जाने के पक्ष में है। उनके निम्‍न उद्हरण जो उनकी प्रसिध्‍द किताब  (रूपए की समस्‍या) Problem of Rupee से लिया गया है
‘And as the Government chose to have legal-tender notes, the Legislature in its turn insisted on their being of higher denomination. At first it adhered to notes of Rs. 20 as the lowest denomination/n, though it later on yielded to bring it down to 10, which was the lowest limit it could tolerate in1861. Not till ten years after that, did the legislature consent to the issue of Rs. 5 notes, and that, too, only when the Government had promised to give extra legal facilities for their encashment. [f1][f20] 
यह उध्‍दहरण इस किताब में सर रिचर्ड टेम्‍पल के हवाले से लिया गया है इसका हिन्‍दी अनुवाद इस प्रकार है।
‘’सर्व प्रथम विधान मण्‍डल ने कम से कम मूल्‍य वर्ग के रूपए में 20 रूपए के नोट को जारी करने का बल दिया। परंतु बाद में वह इस मूल्‍य वर्ग को घटाकर दस रूपय के नोटो पर सहमत हो गई और यह बाद तक विघानमण्‍डल ने 5 रूपय के नोटो के जारी किये जाने की अनुमति नही दी और यह अनुमति तभी दी गई जब सरकार ने उनके भुनाने के लिए अतिरिक्‍त सुविधाएँ देने का वचन दिया’’
वाल्‍यूम 12 पृष्‍ठ 57 रूपये की समस्‍या उद्धव और समाधान
द्वारा बाबासाहेब डां अंबेडकर सम्‍पूर्ण वाडमय

गौर तलब है कि इस संदर्भ को डॉं अंबेडकर के नाम पर समाचार पत्र पत्रिकाओं सोशल मीडिया में प्रसारित किया जा रहा है। ऐसा करने के पीछे क्‍या मकसद है ये एक षड्यंत्र है या अज्ञानता यह एक जांच का विषय है। जबकि उक्‍त उदाहरण को ध्‍यान से पढेगे तो आप पायेंगे की इसमें कुछ और बात लिखी गई10 वर्ष में मुद्रा बदले जाने संबंध में यहां कोई बात नही की गई है।
यहां यह बताना जरूरी है की सरकार ने एक अच्‍छे मकसद से मुद्रा परिवर्तन का कदम उठाया है लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक व्‍यवसायी बताते हे कि विगत 5-6 दिनों से भारी मात्रा में कुछ धनिको द्वारा बैंक में धन जमा कराया जा रहा था। आशंका है की सरकार के इस निर्णय की भनक कुछ धनकुबेरो को लग गई थी।
क्‍या काले धन पर लगाम लगेगा?
जैसा की आर बी आई ने कालाधनजाली नोटआतंकवाद पर रोक लगाने की बात कही है। चूकि बड़े नोट बंद नही हुये है इसलिए इन समस्‍याओं पर क्षणिक असर तो पड़ेगा लेकिन बाद में समस्‍या जस की तस रहेगी। क्‍योकि काले धन का कैश ट्रांजेक्‍सन आसान होता है।
आईये जाने की काला धन कहां जमा है किन पर कार्यवाही की जरूरत है
1) भूमि पति- कालाधन का सबसे आसान निवेश है ज़मीन खरिदी। भारत में भूमि सीलिगं एक्‍ट लागू है यानि कोई भी व्‍यकित 10 एकड़ से ज्‍यादा सिंचित भूमि नही रख सकता। लेकिन इस नियम को या तो सीथील कर दिया गया या इसकी धज्‍जीयां उड़ा दी गई । आज एक ओर एक व्‍यक्ति के पास सर छिपा ने को न छत है न जमीन, तो दूसरी एक एक व्‍यक्ति के पास 100 से 1000 एकड़ भूमि के मालिकों की संख्‍या लगातार बढती जा रही है। आजादी के बाद काले धन का सबसे ज्‍यादा निवेश भूमि में हुआ है। अत: सीलिंग अधिनियम को और मजबूत बनाने की जरूरत है साथ ही जरूरत है उसे कड़ाई से लागू करवाने की।
2) स्‍वर्ण खरीदी- डॉं अंबेडकर अपनी किताब रूपये की समस्‍या में बताते है की सोवियत रूस समेत कुछ विकसित देश में स्‍वर्ण की खरीदी की सीमा बांधी गई है। भारत में काला धन निवेश की दूसरी सबसे पसंदीदा जगह स्‍वर्ण खरिदी है। अत: स्‍वर्ण खरीदी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए तथा पूर्व में घरो में जमा सोना का घोषणा पत्र लिया जाना चाहिए।
3) राजनीतिक पार्टियो को चंदा- चूकि राजनीति पार्टी को दिया जाने वाला चंदा आर टी आई के अंतर्गत नही आता इसलिए यहां निवेश अत्‍यंत अच्‍छा माना जाता है बडे अद्यौगिक घराने वे इसके सहारे संविधान में संशोधन अपने व्‍यसायीक लाभ को बढाने के लिए करते रहे है।
4) धार्मिक स्‍थल को दिया जाने वाला धन- भारत एक धार्मिक देश है लोग अपनी आत्‍म संतुष्टि के लिए चंदा देते है ते वहीं गुप्‍त धन के रूप में काला धन भी खूब दिया जाता है। उसी प्रकार काला धन को सफेद बानने का गोरख धधा भी किया जाता है। पिछले दिनो ऐसा ही मामलो सामने आया एक संत काला धन को सफेद करने का समाचार मीडिया मे सुर्खियों में था।
5)शेयर एवं महंगी चल संपत्ति- इसके बाद कालाधन का निवेश शेयर बाजार तथा महँगी चल सम्‍पत्ति में किया जा रहा है।
यदि वास्‍तव में कालेधन/ आतंकवाद/ जाली नोट में अंकुश लगाना है तो इन 5 बिन्‍दुओ पर गौर करना आवश्‍यक है। क्‍याकि काला धन की खपत की गुन्‍जाईश जिस देश में ज्‍यादा होगी वहां भ्रष्‍टाचार/ आतंकवाद/ जाली नोट का बजार फलेगा फूलेगा।
अत: सबसे पहले आज़ादी के बाद काला धन जमा कररने वाले लागो पर कड्री कार्यवाही किया जाना चाहिए तभी भविष्‍य में लोग इससे बाज आयेगे। मुद्रा बदलने की प्रक्रिया को काला धन पर प्रहार के रूप में देखा जाना उचित नही है क्‍योकि 1946 और 1978 में भी इस प्रकार मुद्रा की वापसी या परिवर्तन हुआ था किन्‍तु काला धन पर कितना अं‍कुश लगा ये बात किसी से छि‍पी नही है।
बहर हाल सरकार के फैसले का स्‍वागत है देखना है कि इन पांच बिन्‍दुओ पर कठोर कदम कब उठाया जायेगा या मुद्रा (वापसी) परिवर्तन ग़रीबों की परेशानी का सबब बनकर रह जायेगा।
 [f1]For such extra facilities, and measures adopted to materialise them, Cf. the interesting speech of the Hon. Sir Richard Temple on the Paper Currency Bill dated January 131871, S.L.C.P., Vol. X, pp. 22-25


भवदीय 
संजीव खुदशाह
Sanjeev Khudshah
MIG-II/156, Phase-1,
Near St Thomas School,
Kabir Nagar, Raipur (C.G.) 492099
Cell No. 09977082331