हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा वर्ष 2015-16 का हिन्दी अकादमी हिन्दी सेवा सम्मान आदरणीय प्रो. विमल थोरात को दिये जाने की घोषणा की गयी है । यह सम्मान मार्च, 2016 के अंतिम सप्ताह में एक विशेष समारोह में अर्पित किया जाएगा । प्रो. विमल थोरात को इस सम्मान के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई । जय भीम ।
प्रो. विमल थोरात भारतीय दलित साहित्य की प्रमुख हिंदी पत्रिका 'दलित अस्मिता' के संपादक है | भारतीय दलित साहित्य कोर्स जो इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के निर्माण कार्य में अथाह मेहनत से आज विद्यार्थिओं के लिए उपलब्ध है | विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से भारतीय दलित साहित्य में मुकम्मल मंच प्रदान किया है | इस पुरस्कार से उनके कार्य को सराहा गया है |
प्रो.
विमल थोरात का संक्षिप्त जीवन परिचय
7 जुलाई, 1949 को
विदर्भ (अमरावती) महाराष्ट्र में जन्मी प्रो. विमल थोरात जानी-मानी दलित चिंतक, शिक्षाविद, लेखिका
एवं समाजिक कार्यकर्त्ता हैं । मूलत: मराठी भाषी प्रो. विमल थोरात की बी. ए. तक की
शिक्षा मराठी माध्यम में हुई । फिर आपने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से हिन्दी साहित्य में एम. ए., एम.फिल. एवं पीएच.डी. की । उल्लेखनीय है कि
जे.एन.यू में दलित साहित्य पर हिन्दी में पहली पीएच.डी. प्रो. विमल थोरात ने ही की
। आप ’इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त
विश्वविद्यालय (IGNOU)
के हिन्दी विभाग से प्रोफेसर एवं डॉ. बी. आर आंबेडकर चेयर से संयोजिका के पद से
सेवानिवृत हुई हैं । आपने ‘इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय’ में कार्यरत
रहते हुए एम. ए. (हिन्दी) कोर्स का भारतीय दलित साहित्य पाठ्यक्रम तैयार किया ।
दलित साहित्य पर
केन्द्रित ‘दलित अस्मिता’
त्रैमासिक पत्रिका की आप संपादक हैं । इस पत्रिका के माध्यम से आप
विभिन्न भारतीय भाषाओं की दलित रचनाओं को हिन्दी भाषा में सामने लाने का
महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं । यह पत्रिका हाशिए की अस्मिताओं के मुद्दों को स्वर
प्रदान करने में सहायक भूमिका अदा कर रही है ।
‘राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान’ (NCDHR)
में प्रो. विमल थोरात ‘ऑल इंडिया दलित
महिला अधिकार मंच’ (AIDMAM) की राष्ट्रीय
संयोजक रही । इस पद पर रहते हुए प्रो. विमल थोरात ने दलित महिलाओं के अधिकारों के
लिए जमीनी स्तर पर महती कार्य किया । मार्च, 2015 में आप ‘राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान’ के राष्ट्रीय संयोजक के पद निर्वाचित हुई और इस
पद का निर्वाह करते हुए आप दलित समुदायों पर हो रहे जातीय अत्याचारों के विरुद्ध
संघर्षरत हैं ।
आप ‘सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एंड आर्ट’ की अध्यक्ष है और इस सेन्टर के माध्यम से आप
उत्तर भारत में दलित साहित्य और कला के विकास में एक सार्थक भूमिका निभा रही है ।
प्रो. विमल
थोरात दो बार (2004-2011) ‘दलित लेखक संघ’ की
राष्ट्रीय अध्यक्ष रही । वे इस पद पर निर्वाचित हुई पहली महिला है । इस पद पर रहते
हुए प्रो. थोरात ने दलित लेखन की मजबूत पहचान स्थापित करने की दिशा में सराहनीय
कार्य किया । साथ ही दलित लेखकों की नई पीढ़ी को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान
दिया ।
प्रो. विमल
थोरात दलित साहित्यिक आंदोलन के विकास में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं । और साथ ही
दलित मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन के माध्यम से निरंतर अपनी आवाज बुलंद
करती रही हैं ।
डॉ. आंबेडकर की वैचारिकी के मूल्यों को समाज में स्थापित करने की दिशा में आप लगातार प्रयासरत हैं । इन प्रयासों के चलते प्रो. थोरात लेखन और आंदोलन दोनों ही मोर्चों पर सक्रिय हैं । प्रो. विमल थोरात दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर जागरुकता हेतु सजगता से पहल करती रही तथा विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों से निरंतर अपने विचार रखती रही हैं । यही कारण है कि राष्ट्र की सीमाओं से बाहर भी उनके कार्यों की सराहना होती है । बुद्ध, फुले और आंबेडकर के विचारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें उर्जावान और सक्रिय बनाए रखती हैं ।
डॉ. आंबेडकर की वैचारिकी के मूल्यों को समाज में स्थापित करने की दिशा में आप लगातार प्रयासरत हैं । इन प्रयासों के चलते प्रो. थोरात लेखन और आंदोलन दोनों ही मोर्चों पर सक्रिय हैं । प्रो. विमल थोरात दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर जागरुकता हेतु सजगता से पहल करती रही तथा विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों से निरंतर अपने विचार रखती रही हैं । यही कारण है कि राष्ट्र की सीमाओं से बाहर भी उनके कार्यों की सराहना होती है । बुद्ध, फुले और आंबेडकर के विचारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें उर्जावान और सक्रिय बनाए रखती हैं ।
प्रो. विमल थोरात की प्रकाशित पुस्तकें
निम्नलिखित है -
1 हिन्दी
साठोत्तरी कविता और मराठी दलित कविता में सामाजिक - राजनैतिक चेतना
2. हिन्दी
और मराठी के स्वातंत्र्योत्तर उपन्यासों में जाति और वर्ग संघर्ष
3. द
साइलेंट वोल्केनो ( दलित कवित्रियों की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद )
4. दलित
साहित्य का विद्रोही स्वर (संपादित)
5. दलित
साहित्य का स्त्रीवादी स्वर
6. प्रभुत्व
एवं प्रतिरोध: भारतीय दलित कहानियां (संपादित)
दलित विमर्श, स्त्री विमर्श एवं मानवाधिकारों से जुड़े
मुद्दों पर आपके विविध आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहते
हैं । साथ ही आपको कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया है ।
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फिर से हार्दिक अभिनंदन
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